Friday, January 22, 2010

Kharbooje Ka Rang

खाया मीट खरबूजा राम  ने, चिकन खा गए पूरा,
बीफ़-पोर्क बस नहीं छुआ, और ना कुछ रहा अधूरा.
काट-काट कर, छील-छील कर, नोच-नोच कर खाते,
हम बैठे चुप देखा करते, वो तो नहीं अघाते.

समझाया करते थे हमको, मांस कभी ना छूना,
जाते हो अमरीका, सो फिर पाप चढ़ेगा दूना.
हम जो अंडा भी छू देते, कहते तुरत नहाओ,
राम नाम का जाप करो, औ तभी पास तुम आओ.

पर जब से परदेस हैं आये, भूल गए सब काम,
राम नाम न लिया कभी भी, करते हैं बदनाम.
जो पाप किये हैं यहाँ पे हमने, वो तो हैं अमरीकन,
इसी लिए तो काट रहे हैं, अंडा-बकरा-चीकन.

सफ़ल करो इनका जीवन और मुक्ति दो इनको तुम,
आये हो परदेस, भला क्यूँ रहना हो फिर गुमसुम.
कहते हैं यह देश अलग है, अलग यहाँ का ढंग,
खरबूजे को देख चढ़ा है, खरबूजे का रंग!!!!!

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